थप्पड़ मारने के लिए उतावले होना, अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं, कौनसी धारा में होगा केस दर्ज | Section 358 IPC In Hindi.

थप्पड़ मारने के लिए उतावले होना, अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं, कौनसी धारा में होगा केस दर्ज | Section 358 IPC In Hindi.


SachinLLB : आज हम बात करेंगे कि थप्पड़ मारने के लिए उतावले होने (being eager to slap) पर कोनसी धारा में केस दर्ज होता हैं, वैसे तो दोस्तों हमारे समाज मे कई छोटे-मोटे विवाद हमेशा होते रहते हैं और आपका भी किसी न किसी से झगड़ा हुआ ही होगा, ओर लगभग हर झगड़े में कोई ना कोई व्यक्ति थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठा ही लेता है।


कभी-कभी कोई व्यक्ति सामने वाले को डराने के लिए सड़क पर पड़ा पत्थर भी उठा लेता है और पत्थर से मारने के लिए उतावला होता है। अगर थप्पड़ मार दिया जाए या पत्थर मार दिया जाए तो निश्चित रूप से अपराध है, लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाना या किसी व्यक्ति को मारने के लिए पत्थर उठाना भी अपराध है।


अगर किसी को मारने के लिए पत्थर फेंका गया है और वह पत्थर उस व्यक्ति को नही भी लगा हो यानी निशाने पर नहीं भी लगा हो तब भी अपराध माना जाता है। ओर शायद ये अपराध हम आये दिन करते रहते हो।


आईपीसी की कौनसी धारा में होगा केस दर्ज -


थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाना या किसी व्यक्ति को मारने के लिए पत्थर उठाना भी अपराध है। और अगर किसी को मारने के लिए पत्थर फेंका गया है और वह पत्थर उस व्यक्ति को नही भी लगा हो यानी निशाने पर नहीं भी लगा हो तब भी अपराध माना जाता है। अगर थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया जाता है तो धारा 358 आईपीसी के अंतर्गत अपराध माना जायेगा।


आईपीसी की धारा 358 की परिभाषा | Section 358 IPC -


यदि कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को डराने या भयभीत करने के लिए किसी आपराधिक बल का प्रयोग कर हमला करता है, जिससे किसी भी प्रकार की क्षति नहीं होती हैं, लेकिन वह व्यक्ति भयभीत हो जाता है या घबराहट महसूस करता है, तब ऐसा करने वाला व्यक्ति इंडियन पेनल कोड यानि भारतीय दंड संहिता की धारा 358 के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।


आईपीसी की धारा 358 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान -


भारतीय दंड संहिता की धारा 358 के अनुसार जो कोई भी किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जाएगा ।


यह गैर-संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध हैं, एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 320 की सारणी 1 के अंतर्गत उस व्यक्ति से समझौता योग्य है, जिसे आपराधिक बल या हमले द्वारा डराया गया हो। तथा सुनवाई का अधिकार कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को होता है।


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