मध्यस्थम ARBITRATION क्या है ? न्यायालयीन मामलों COURT CASE में आर्बिट्रेशन की भूमिका और महत्व क्या हैं ?

मध्यस्थम ARBITRATION क्या है ? न्यायालयीन मामलों COURT CASE में आर्बिट्रेशन की भूमिका और महत्व क्या हैं ?



आर्बिट्रेशन क्या है ? महत्व एवं भूमिका WHAT IS ARBITRATION -


SachinLLB : आर्बिट्रेशन एक प्रकार का वह तरीका हैं जो पक्षकारों ( Parties ) की सहमति से मध्यस्थ की नियुक्ति करके विवाद को निपटाने के लिए निर्दिष्ट किया जाता है, जिसमें मध्यस्थ (Mediation) के लिए यह बाध्यकर नहीं होता कि वह सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) या साक्ष्य अधिनियम ( Evidence Act ) के प्रावधानों का अनुपालन करें । इसमें मध्यस्थ द्वारा विवाद के संबंध में निर्णय दिया जाता है उसे अवार्ड या पंचांग कहते हैं, जो न्यायालय की डिक्री ( Decree ) के समान ही होता है ।


• आर्बिट्रेशन ( Arbitration ) का महत्व इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वर्तमान में आजकल लगभग हर Commercial contract में Arbitration Clause होता है । 


• सरकारी तथा प्राइवेट बैंकों के लगभग सभी lone Agreement में आर्बिट्रेशन क्लॉज होता है जिससे कि लोन से जुड़े मामले आर्बिट्रेशन के माध्यम से ही निपटाए जा सके ।


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ARBITRATION के कानून व मुख्य प्रावधान Law and main provisions -


मध्यस्थम संबंधी पूर्ण विधि की व्यवस्था मध्यस्थता ( Mediation ) एवं सुलह अधिनियम 1996 तहत की गई है । 

01. यदि पक्षकारों के बीच में अगर मध्यस्थ करार किया हुआ है और कोई विवाद उत्पन्न होता है तो धारा 5 के अनुसार कोई न्यायलय उस विवाद में हस्तक्षेप नहीं कर सकता बल्कि उस विवाद को आर्बिट्रेशन द्वारा ही निपटाया जा सकता है ।



02. कोई न्यायिक प्राधिकारी जिसके समक्ष कोई भी ऐसा मामला लाया जाता है जो कि आर्बिट्रेशन का विषय है तो धारा 8 के अंतर्गत वह पक्षकारों को आर्बिट्रेशन के लिए निर्दिष्ट कर सकता है । 

03. धारा 9 के अंतर्गत न्यायलय से अंतरिम राहत ली जा सकती है, जबकि धारा 17 के अंतर्गत आर्बिट्रेटर से अंतरिम राहत ली जा सकती है । ओर ध्यान दें कि वाहन से जुड़े लोन के मामलों में ज्यादातर बैंक इन्हीं धाराओं के तहत आदेश लेकर वाहन उठाने का काम करती हैं।


04. धारा 7 के तहत जब कोई भी पक्षकार अपने विवादों का निपटारा न्यायालय ( Court ) से ना करा कर अपनी सहमति से नियुक्त किए गए मध्यस्थों के माध्यम से कराना चाहते हैं, तब धारा 7 के अनुसार उनके बीच में लिखित रूप से आर्बिट्रेशन करार होना आवश्यक है, जिस करार पर दोनों पक्षकारों के हस्ताक्षर होने चाहिए ।


05. यदि कोई पक्षकार धारा 34 के अनुसार अवार्ड को चैलेंज ( Challenge the award ) करना चाहता है, तो अवार्ड की प्रति मिलने से 3 महीने के अंदर ही अवार्ड में आपत्ति दर्ज करते हुए न्यायालय में चैलेंज कराने के लिए आवेदन प्रस्तुत करना होता है जिस पर न्यायालय द्वारा दोनों पक्षकारों को नोटिस देने के बाद दोनों पक्षों की सुनवाई के पश्चात यदि आपत्ति को संपूर्ण पाया जाता है , तो न्यायालय द्वारा अवार्ड को अपास्त करने का आदेश पारित किया जा सकता हैं। 


आर्बिट्रेशन के लाभ Benefits of Arbitration -


01. कई बार मामले तकनीकी प्रकृति के होते हैं , जिनको समझने के लिए एक विशेष तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है , ऐसे तकनीकी मामलों को ऐसा ज्ञान रखने वाले विशेष व्यक्तियों को मध्यस्थ ( Mediation ) के रूप में नियुक्त करके आसानी से निपटाया जा सकता है । 


02. आर्बिट्रेशन ( Arbitration ) के माध्यम से न्यायालय की अपेक्षा केस ( Case ) का शीघ्रता से निपटारा किया जाता है क्योंकि न्यायालय में पहले से ही बहुत सारे मुकदमे लंबित रहते है , जबकि दूसरी तरफ आर्बिट्रेटर के पास वही मामला सुनवाई के लिए होते है जो सिविल मुकदमों से कम खर्चीले होते है ।


03. न्यायालय ( Court ) द्वारा पक्षकारों की सहमति से ही आर्बिट्रेटर नियुक्त किया जाता है , तथा पक्षो की सुविधा को देखते हुए विवाद की सुनवाई का स्थान व समय भी बदला जा सकता है ।



04. आर्बिट्रेशन की कार्यवाही में पक्षकार ( client ) अपनी सहमति से सरल प्रक्रिया को अपना सकते हैं और मध्यस्थ पर यह बाध्यकर नहीं होता कि वह सिविल प्रक्रिया संहिता एवं साक्ष्य अधिनियम की जटिल एवं तकनीकी प्रक्रिया को ही अपनाएं इसलिए आर्बिट्रेशन की कार्यवाही जटिल प्रक्रिया न होकर विशेष रूप से न्याय पर केंद्रित रहती है ।


05. अर्बिट्रियल अवार्ड ( Arbitral Award ) सिविल डिक्री के समान ही होता है, जिसके आधार पर न्यायालय में निष्पादन ( Execution ) और कुर्की ( Attachment ) की प्रक्रिया शुरू की जाती है । 


महत्वपूर्ण सुझाव -


• आर्बिट्रेशन के नोटिस ( Notice ) के माध्यम से आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होती है ।


•  कई बार आमतौर पर देखा गया है कि लोग आर्बिट्रेशन के नोटिस की उपेक्षा यह मानकर कर देते है कि वह किसी कोर्ट का नोटिस नहीं है ,परन्तु फिर बाद में उनकी अनुपस्थिति में अवार्ड पास हो जाता है जिसके आधार पर सामने वाली पार्टी कोर्ट में Execution और Attachment की प्रक्रिया शुरू कर देती है इसलिए पक्षकारों को आर्बिट्रेशन नोटिस को गंभीरता से लेना चाहिए ।


• पक्षकारों को आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया में उपस्थित होकर अपने - अपने पक्ष को जरूर रखना चाहिए ।


•  जब भी आपके द्वारा किसी के साथ कोई Contract या Agreement किया जाता है, तो यह जरूर देख लें कि उसमें कोई आर्बिट्रेशन क्लॉज ( Arbitration Clause ) तो नहीं है और यदि है तो हस्ताक्षर ( Signature ) करने से पहले उसके बारे में आर्बिट्रेशन का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति से या वकील से जरूर सलाह या परामर्श करें ।

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