आर्य समाज विवाह और तलाक के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां।

आर्य समाज विवाह और तलाक के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां।

Aary samaj me shadi kese karte hai, court marriage application from Delhi, arya samaj mandir, arya samaj wedding, aary samaj, Talak lene ke liye kya karna chahiye, shadi karne ke liye kya karna chahiye,

SachinLLB :- इस लेख में आर्य समाज द्वारा किये गए विवाहों (Marriag promoted by Arya Samaj) में शामिल विवाह और तलाक के कानूनों को आपके सामने रखा गया हैं। 

सन 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई थी, आर्य समाज ने भारत में एक प्रमुख महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया हैं तो आइये हम आपको आर्य समाज मे होने वाले विवाह और तलाक के बारे में बताते हैं -


आर्य समाज विवाह (Arya Samaj Marriage ) प्रारंभ कैसे हुआ -


आर्य समाज विवाह (Arya samaj marriage) का समारोह वैदिक रीति रिवाजों के अनुसार आयोजित किया जाता है, और इसकी वैधता आर्य समाज विवाह मान्यता अधिनियम 1937 से और हिंदू विवाह अधिनियम 1955  (Hindu Marriage Act 1955) के प्रावधानों से ली गई है। हिंदू विवाह आर्य समाजियों के लिए समान रूप से लागू होता है।

क्योंकि आर्य समाज से संबंध रखने वाले मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं, इसलिए, हिंदुओं के अलग-अलग रीति-रिवाजों से उनका विवाह सम्पन्न कराया जाता है।


आर्य समाज द्वारा विवाह के लिए पात्रता -


• लड़के की उम्र 21वर्ष पुर्ण और लड़की की उम्र 18 वर्ष पुर्ण होनी चाहिए।

• कोई भी व्यक्ति जो हिंदू,जैन, बौद्ध, सिख धर्म का हो वो आर्य समाज विवाह (Arya samaj marriage) कर सकते हैं।

• कोई भी व्यक्ति अंतर-जातीय विवाह (interracial marriage) और अंतर-धार्मिक विवाह भी आर्य समाज विवाह में कर सकते हैं, बशर्ते विवाह करने वाले व्यक्ति मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नही हों।

• कोई भी व्यक्ति जो कोई गैर-हिंदू जोड़ा विवाह करना चाहेगा, तोआर्य समाज द्वारा उन्हें शुद्धि नामक प्रक्रिया के माध्यम से धर्मांतरित करने की अनुमति देता है। ईसाई, पारसी, मुस्लिम, या यहूदी, अगर, अपनी इच्छा और सहमति से यदि हिंदू धर्म को बदलने या अपनाने के लिए तैयार हैं, तो आर्य समाज मंदिर इस तरह के रूपांतरण के लिए अर्थ शुद्धि नामक एक अनुष्ठान करता है।

आर्य समाज विवाह की रस्में और प्रक्रिया -


आर्य समाज विवाह (Arya Samaj Marriage) बहुत ही सरल और सीधा हैं, वैदिक सिद्धांतों के आधार पर, विवाह के दौरान लिखे गए सभी वचनों को वर और वधू को समझाया जाता है तथा  विवाह हिंदू विवाह के रीतिरिवाजों की तरह ही सम्पन्न कराया जाता है, तथा विवाह अग्नि के चारों ओर 7 फेरों की प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न कराया जाता है एवं सम्पूर्ण विवाह संपन्न होने में लगभग 1-2 घंटे लगते हैं।

सर्वप्रथम में आर्य समाज मंदिर की बुकिंग (temple booking) और आवश्यक कागजात प्रस्तुत करना होते है।

पंजीकरण होने के बाद मंदिर आपको विवाह के लिए एक तारीख देगा।

जो तारीख मंदिर द्वारा दी जाती है उस दिन उस दिन दोनों पक्षों को जाना होता है तथा शादी की रस्में पवित्र वैदिक भजन, मंत्रोच्चार और पंडित जी द्वारा इसकी व्याख्या के साथ शुरू की जाती है, फिर माला पहनाने की रस्म होती है, फिर यज्ञ की शुरुआत एक पवित्र धागा पहने हुए दूल्हे से होती है ।


ओर उसके बाद अग्नि के चारों ओर पवित्र 7 चक्कर लगाने के बाद कन्या दान की प्रक्रिया का पालन किया जाता है, फिर कन्या दान की प्रक्रिया होने के बाद  प्रतिज्ञा मंत्र किया जाता है,जिसमे दूल्हा दुल्हन का हाथ पकड़ता है और साथ में दोनों अपनी शादी की प्रतिज्ञा लेते हैं। इस प्रकार अग्नि के चारों ओर हिंदू, सप्तपदी या सात पवित्र चक्र देखे जाते हैं उसके बाद नवयुगल भविष्य में आगे बढ़ते हैं।


आर्य समाज विवाह के लिए आवश्यक दस्तावेज -


आर्य समाज विवाह के लिए वर और वधू दोनों के फोटो 4 प्रति में।
दोनों पक्षों का जन्म प्रमाण की प्रति।
दोनों पक्षों के पते के दस्तावेज जैसे- आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, राशनकार्ड इनमे से कोई भी।

वर और वधू दोनों की आयु के सम्बंध में दस्तावेज, तथा  दुल्हन के लिए 18 वर्ष और दूल्हे के लिए 21 पुर्ण होने चाहिए।

पवित्र विवाह समारोह का गवाह बनने के लिए दो गवाहों का होना आवश्यक हैं।

यदि विवाह करने वाली कोई भी पार्टी या दोनों पार्टी तलाकशुदा है, तो कोर्ट द्वारा जारी किए गए तलाक के प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति।

यदि जहां शादी करने वाली कोई भी पार्टी या दोनों पार्टी विधवा है, मृत पति या पत्नी की मृत्यु का प्रमाण पत्र की प्रति।

यदि जहां विवाह करने वाली कोई भी पार्टी विदेशी नागरिक है या विदेशी पासपोर्ट रखती है या विदेशी आवासीय पता रखती है तो - पार्टी की वर्तमान वैवाहिक स्थिति का प्रमाण पत्र / संबंधित वैध वीजा/ अनापत्ति प्रमाण पत्र की प्रति।


आर्य समाज विवाह का पंजीकरण -


यदि आपने आर्य समाज के तहत विवाह किया है तो इस विवाह को अधिनियम के खंड 8 के तहत जिले / राज्य के विवाह अधिकारी एवं रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकृत करवाएं, जहां यह विवाह सम्पन्न हुआ था।

2006 के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश व्यक्तिगत कानूनों में विवाह के पंजीकरण के मुद्दे पर सख्त हैं, एक आर्य समाज विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 या विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत पंजीकृत किया जा सकता है।

हिंदू विवाह अधिनियम उन सभी मामलों में लागू होता है जहां पति और पत्नी दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख या जहां वे धर्मांतरित हुए हैं  इनमें से किसी भी धर्म के हो या जहां या तो पति या पत्नी या दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हैं, विवाह विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत पंजीकृत है।

हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के अंतर्गत विवाह के पंजीकरण के संबंध में कानून बनाने के लिए राज्यों पर एक जिम्मेदारी डालता है, लेकिन यह भी जोर देता है कि जहां विवाह पंजीकृत नहीं है, उसके गैर पंजीकरण विवाह को अमान्य नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार विवाह को पंजीकृत करवाने की सलाह दी जाती है और यह भविष्य में शादी टूटने के विवादों से बचने का सही तरीका भी माना जाता है।


 

हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार आर्य समाज विवाह का पंजीकरण -


विवाह पंजीकरण किसी भी उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, ऑफ़लाइन के साथ किया जाता है, तथा वर्तमान में लगभग सभी न्यायालयों/नगर पालिका/नगर निगम में उपलब्ध एक अन्य विकल्प ऑनलाइन पंजीकरण का है।

विवाह पंजीकरण फॉर्म की समस्त औपचारिकताओं को पूरा करना।


कोई भी दस्तावेज जो दोनों के जन्म की तारीख प्रदान करता है। जैसे 10वीं की मार्कशीट आदि।


दोनों पक्षों के 2 पासपोर्ट साईज के फोटो,  2 शादी के फोटो और विवाह निमंत्रण कार्ड ।


राजपत्रित अधिकारी का सत्यापन अनिवार्य है।


विवाह पंजीकरण का जो भी शुल्क लगभग 50-100 आई एन आर जो कि चालान के रूप में जमा किया जाता हैं।


इन सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद, युगल को शादी का प्रमाण पत्र प्रदान करना जिला प्रशासन, जनपद पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम आदि का कर्तव्य होता है।


अनंत नैथानी बनाम उत्तराखंड राज्य (2013) उपरोक्त मामले में उत्तराखंड के हाई कोर्ट ने यह पाया कि आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट 1937 ने विवाह प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया है और न ही किसी व्यक्ति को प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत किया हुआ है ।


इस प्रकार यह माना जाता था कि किसी भी आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किए गए विवाह प्रमाण पत्र का कोई कानूनी प्रभाव नहीं हैं, सिवाय उस व्यक्ति के कि विवाह प्रमाणपत्र जारी करने वाले व्यक्ति द्वारा यह प्रमाण पत्र दिया गया था कि वह स्वयम इस विवाह का गवाह था।


इस प्रकार आर्य समाज के विवाह को रद्द नहीं हो सकता या आर्य समाज मंदिर में तलाक नहीं हो सकता, इसके लिए केवल न्यायालय में होना आवश्यक है, तलाक के लिए परिवाद दाखिल करने का मंदिर को उचित अधिकार नहीं है, न्यायालय द्वारा जारी तलाक की डिक्री दुनिया भर में मान्य है।


देवकी नंदन अग्रवाल AIR 1992 SC 96 और बलराम कुमावत बनाम भारत संघ (2003) 7 SCC 628, में एक एकल न्यायाधीश कुछ नियम और निर्देश पारित करते हैं कि जब युगल आर्य समाज के माध्यम से शादी करने का विकल्प चुनते हैं, तो यहाँ मध्यप्रदेश की ग्वालियर खंडपीठ द्वारा चुनौती दी गई थी कि आर्य समाज के अधिकारियों और उनके आंतरिक मामलों द्वारा पहले से ही नियम जारी किए गए हैं।


आर्य समाज विवाह मान्यता अधिनियम 1937 के कानूनों के विपरीत है, इसलिए एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार नहीं रखा गया और यह भी कहा गया कि वह इस तरह के निर्देश जारी करने के लिए सक्षम नहीं हैं।  इस प्रकार न्यायालय के पास कोई भी निर्देश या नियम जारी करने का अधिकार नहीं है जब व्यक्ति आर्य समाज के माध्यम से शादी करते हैं।


जब विवाह अपंजीकृत होता है और तलाक के लिए पत्नी आवेदन करना चाहती है तो पति, पत्नी को कोई जवाब नहीं दे रहा है तो पति की सहमति के बिना भी पत्नी क्रूरता के आधार पर या डावर की मांग पर मामला दर्ज कर सकती है और बताए गए बिंदुओं को मानसिक क्रूरता पर साबित करने के लिए उचित साक्ष्य होना चाहिए।


आर्य समाज रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के तहत शादी करने के फायदे -


आर्य समाज विवाह की लागत बहुत कम हैं क्योंकि आर्य समाज मंदिर विवाह के लिए बहुत कम राशि लेता है।

विवाह का समापन केवल अग्नि के समक्ष 7 फेरे लेकर किया जाता है बाकी अन्य कार्यक्रम नह होते है इसलिए विवाह केवल 3-3 घंटों के भीतर ही सम्पन्न हो जाता है।

आर्य समाज विवाह में केवल दो गवाहों की आवश्यकता होती है, जो माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त या कोई भी हो सकते हैं।

व्यावहारिकता में कोई भी 20 मिनट के भीतर आर्य समाज विवाह की योजना बना सकता है, और आर्य समाज मंदिर में जा सकता है और एक घंटे के भीतर विवाह की रस्म पूरी कर सकता है।


आर्य समाज विवाह का रीति-रिवाजों के तहत तलाक कैसे लिया जाता है -


आर्य समाज विवाहों को विखंडन करने के लिए तलाक की प्रक्रिया हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार हिंदू तलाक की प्रक्रिया के समान ही है।  विवाह में युगल या तो आपसी सहमति के द्वारा या ऐसे मामलों में जहां आपसी सहमति मौजूद नहीं है,तो लड़ाई के माध्यम से न्यायालय में तलाक हेतु वाद दायर कर सकते हैं।

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी (आपसी सहमति से तलाक) आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करता है -

विवाह के लिए दोनों पक्ष एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हो,

दोनों पक्ष एक साथ नहीं रह पाए हैं,या साथ नही रहना चाहते हैं और अब वे विवाह विच्छेद के लिए परस्पर सहमत हो गए हैं। तो वे न्यायालय में जाकर वाद दाखिल करके तलाक की डिग्री प्राप्त कर सकते है।

यदि दोनों पक्षों को जिला न्यायालय के समक्ष तलाक की मांग करने वाली एक याचिका दायर करने की आवश्यकता है। तो

याचिका दायर करने से पहले विवाहित युगल को यह सुनिश्चित करना कर लेना चाहिए कि वे एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि से अलग-अलग रह रहे हैं।

याचिका दायर करने के बाद कोर्ट की अनुमति के बाद बयान दर्ज करने के लिए दोनों पक्षों की आवश्यकता होती है।

आपसी सहमति से तलाक मांगने वाले युगल को इस बात का कारण बताना होगा कि वे एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं और याचिका में उल्लेख किया है कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं और वे परस्पर सहमत हैं कि विवाह को भंग कर देना चाहिए।

याचिका दाखिल करने के 6 महीने की अवधि के बाद कोर्ट और 18 महीने से अधिक नहीं (कूलिंग ऑफ पीरियड) पक्षों को सुनने के लिए एक तारीख देगा।

यदि मुकदमा वापस ले लिया जाता है या पक्ष दिए गए तारीख पर अदालत में नहीं जाते हैं, तो याचिका रद्द हो जाती है, तथा दोनों पक्षों को सुनने और संतुष्ट होने के बाद, कोर्ट विवाह को भंग कर सकती है


आपसी सहमति के बिना आर्य समाज विवाह में तलाक -


यदि विवाह होने के पश्चात कोई पक्ष किसी और के साथ संभोग करते हैं, तो यह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति के बिना भी तलाक के लिए वैध आधार है।

यदि शादी होने के बाद साथी के साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया जाता हैं।

किसी दूसरे पक्ष ने दूसरे धर्म में धर्मांतरण करके हिंदू होना बंद कर दिया है।

यदि दूसरा पक्ष असंदिग्ध रूप से अस्वस्थ मन का हो गया है या इस तरह के मानसिक विकार से लगातार या रुक-रुक कर पीड़ित हो रहा है, जिससे तलाक चाहने वाले से शादी में दूसरी पार्टी के साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

यदि कोई दूसरी पार्टी संचारी रूप में कुष्ठ रोग या किसी अन्य गंभीर रोग से पीड़ित हो।

यदि किसी भी धार्मिक आदेश में प्रवेश करके दूसरे पक्ष ने दुनिया को त्याग दिया हो।

आर्य समाज विवाह में एक पत्नी और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत इस आधार पर आपसी सहमति के बिना तलाक के लिए संघर्ष कर सकती है कि पति ने एक पत्नी होते हुए भी फिर से शादी कर ली या संतोषी विवाह से पहले विवाहित पति की किसी अन्य पत्नी ने जीवित रहते हुए शादी कर ली थी।


मप्र. हाई कोर्ट खंडपीठ, ग्वालियर द्वारा आर्य समाज विवाह पर जारी दिशा निर्देश -

विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त करने से पहले आर्य समाज मंदिर विवाह अनुष्ठानों पर ग्वालियर पीठ द्वारा कुछ दिशानिर्देश जारी किए गए, जो निम्न प्रकार है -

जब दूल्हा और दुल्हन आर्य समाज मंदिर के सामने विवाह का निर्णय लेते हैं, तो दुल्हन औऱ दुल्हे की तस्वीरों के साथ उक्त पते पर माता-पिता या परिवारजनो को पहले नोटिस जारी करना प्रबंधन का कर्तव्य होगा।

यदि किसी भी प्रकार की आपत्तियां प्राप्त हुई, तो सभी तथ्यों को सत्यापित करके मंदिर प्रबंधन द्वारा निपटा जाएगा और यदि आवश्यक हो, तो स्थानीय पुलिस की मदद भी ली जा सकती है।

उभयपक्षो की जन्म  तारीख को सत्यापित करने के लिए वर-वधू की कक्षा 10 वीं की मार्कशीट ली जाएगी।

यदि दूल्हा- दुल्हन शिक्षित नहीं होते हैं, तो ऐसी स्थिति में वहां जन्म की तारीख को परिवार के सदस्यों की मदद से या सरकारी अस्पताल के माध्यम से या उचित मुहर के साथ सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त चिकित्सा व्यवसायी द्वारा सत्यापित किया जा सकेगा।

दूल्हा-दुल्हन के मूल पते को आधार कार्ड, पैन कार्ड या यदि आवश्यक हो तो स्थानीय पुलिस द्वारा दस्तावेजों को सत्यापित किया जा सकेगा।

उपरोक्त सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद उन्हें सत्यापित करने और विवाह को सफल बनाने के लिए  दोनों पक्षों के इरादे को देखते हुए मंदिर प्रबंधन ,सभी संस्कारों, सप्तपदी, अनुष्ठानों और समारोहों के उचित अवलोकन के साथ विवाह को सफल करेगा।

विवाह दोनों पक्ष के दो गवाहों की उपस्थिति में उनके पहचान प्रमाण और आवासीय प्रमाण के साथ व्यक्तिगत नोटरीकृत शपथ-पत्र और गैर न्यायिक स्टांप पेपर के साथ होगा जो 100 रुपये या उससे अधिक मूल्य का हो सकता है जो कहता है कि वे व्यक्तिगत रूप से दुल्हा-दुल्हन को जानते हैं।

समस्त अनुष्ठान,संस्कार, सप्तपदी जैसे विवाह उत्सव की हर प्रक्रिया को आर्य समाज मंदिर द्वारा वीडियोग्राफी के माध्यम से दर्ज किया जाएगा।

विवाह सम्पूर्ण होने के पश्चात मंदिर प्रबंधन के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता द्वारा वर-वधू को विवाह प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।

आर्य समाज मंदिर प्रबंधन द्वारा विवाह की पूरी प्रक्रिया व समस्त दस्तावेजों और रिकॉर्डिंग की एक प्रति भी रखेगा।

अगर शिकायत में लड़की की गुमशुदगी, धोखाधड़ी, या शादी के मामले में पुलिस में शिकायत की जाती है, तो पुलिस के जिला प्रमुख के आदेश से,अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर आर्य समाज मंदिर से जांच और सत्यापन करेंगे।

जानकारी अच्छी लगे तो Follow & Share करें जिससे आपको नई-नई जानकारी मिलती रहे।

Tags

Top Post Ad

Below Post Ad