गुड़ी पड़वा: हिन्दू नववर्ष का महत्त्व और विशेषताएँ | Gudi Padwa: Importance and Features of Hindu New Year.

गुड़ी पड़वा : हिन्दू नववर्ष का महत्त्व और विशेषताएँ | Gudi Padwa: Importance and Features of Hindu New Year.



गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र और देश के कई हिस्सों में हिन्दू नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को आता है और इसे संवत्सर आरंभ के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन से नया संवत्सर (वर्ष) प्रारंभ होता है, जिसे विक्रम संवत या शक संवत कहते हैं।


गुड़ी पड़वा का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व -


  1. ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि निर्माण – हिन्दू मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी। इस कारण इसे नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है।
  2. रामराज्य की शुरुआत – कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद अयोध्या में इसी दिन प्रवेश किया था, जिससे यह दिन विजय का प्रतीक बन गया।
  3. शालिवाहन संवत का प्रारंभ – महाराज शालिवाहन ने इसी दिन दक्कन क्षेत्र में विजय प्राप्त की थी और शालिवाहन संवत की शुरुआत की थी।
  4. चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिन – यह दिन माँ दुर्गा के नवरात्रि पूजन की शुरुआत भी दर्शाता है, जिसमें माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।


गुड़ी पड़वा का उत्सव और परंपराएँ -


  • गुड़ी की स्थापना – इस दिन घरों के बाहर एक गुड़ी (एक लंबा बाँस, जिस पर रेशमी कपड़ा, आम और नीम की पत्तियाँ, फूल और ऊपर कलश लगाया जाता है) स्थापित की जाती है। इसे विजय और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
  • घर की सफाई और रंगोली – इस दिन घरों की सफाई करके रंगोली बनाई जाती है और घर को सजाया जाता है।
  • नीम के पत्तों का सेवन – पारंपरिक रूप से गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्तियाँ, गुड़ और इमली का मिश्रण खाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
  • विशेष भोजन – महाराष्ट्र में इस दिन पूरनपोली, श्रीखंड और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
  • धार्मिक पूजा और हवन – नववर्ष की सुख-समृद्धि के लिए भगवान विष्णु, ब्रह्मा और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।


गुड़ी पड़वा के साथ अन्य नववर्ष उत्सव -


गुड़ी पड़वा के दिन भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से नववर्ष मनाया जाता है:


  • उत्तर भारत – इसे विक्रम संवत का प्रारंभ मानकर नवसंवत्सर मनाया जाता है।
  • कर्नाटक और आंध्र प्रदेश – इसे युगादि (उगादि) कहा जाता है।
  • कश्मीर – इसे नवरेह के रूप में मनाया जाता है।
  • पंजाब – कुछ दिनों बाद बैसाखी के रूप में नववर्ष आता है।गुड़ी पड़वा का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
  • यह दिन सौर चक्र और चंद्र चक्र के समन्वय का प्रतीक होता है।
  • इस दिन सूर्य उत्तरायण में होता है, जिससे मौसम में बदलाव आता है और फसल कटाई का समय होता है।
  • आयुर्वेद में इस दिन नीम के सेवन को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला माना गया है।


निष्कर्ष -

गुड़ी पड़वा केवल एक नववर्ष का उत्सव नहीं बल्कि यह सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन हमें सकारात्मकता, नई शुरुआत, विजय और समृद्धि का संदेश देता है।


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