चार्जशीट ( Charge Sheet ) पेश करते ही आरोपी की होगी जमानत, नही रहना पड़ेगा जेल के अंदर।

चार्जशीट ( Charge Sheet ) पेश करते ही आरोपी की होगी जमानत, नही रहना पड़ेगा जेल के अंदर।


SachinLLB : दोस्तों आज हम बात करेंगे कि चालान पेश होते ही न्यायालय (court) से जमानत कैसे प्राप्त करें, वैसे तो पहली पोस्ट में अपने पढ़ा ही है कि चालान या चार्जशीट क्या होती हैं, यह पुलिस द्वारा कब पेश की जाती हैं।


इसलिए न्यायालय से कई बार आरोपी की जमानत निरस्त कर दी जाती हैं, क्योंकि उसकी सबसे प्रमुख वजह यह होती हैं कि जिस अपराध में वह जेल में बन्द हैं अर्थात न्यायिक हिरासत (judicial custody) में, उस अपराध में जांच जारी रहती हैं, तथा न्यायालय के सामने यह स्पष्ट नही होता हैं कि वास्तव में जो व्यक्ति जेल में बंद है उसने उस अपराध को किया है या नही, या उस अपराध (crime) में उसकी क्या भूमिका रही हैं। और दूसरी वजह यह कि उस व्यक्ति के द्वारा जो अपराध किया गया है, वह गंभीर श्रेणी का हैं।


अगर वह आरोपी अनुसंधान जारी रहते हुए न्यायालय के सामने अपनी जमानत याचिका लगा देता है, तो उपरोक्त बताये गए कारणों की वजह से उसकी जमानत याचिका निरस्त (Bail Application Cancelled) कर दी जाती हैं। इसलिए इस बात का ध्यान रहे हैं, गम्भीर अपराध में जमानत याचिका चार्जशीट पेश होने के बाद ही लगाएं ताकि चार्जशीट पेश होते ही आपकी जमानत याचिका न्यायालय द्वारा मंजूर कर ली जाए। या तब लगाए जब कोई साक्ष्य हो जाये।


क्या पुलिस द्वारा अनुसंधान में देरी (Police delay in investigation) करने पर आरोपी को जमानत मिल सकती है -


जब भी पुलिस द्वारा किसी भी आपराधिक मामले में अनुसंधान पूरा करने के बाद संबंधित न्यायालय में धारा 173 सीआरपीसी (Section 173 CrPC) के तहत  चार्जशीट प्रस्तुत की जाती है। जिसे चालान भी कहा जाता हैं। एवं धारा 174 सीआरपीसी में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि पुलिस द्वारा किसी भी मामले का अनुसंधान बिना किसी कारण, अनावश्यक देरी किये बिना पूरा किया जाएगा । 


परन्तु कई बार जांच लंबित होने की वजह से या अनुसंधान लंबित होने की वजह से अपराधी को लंबे समय तक के लिए न्यायिक हिरासत में रहना पड़ता है। जिससे अपराधी एवं उसके परिवार वालों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 


तो हम यह बात कर रहे थे कि क्या पुलिस द्वारा अनुसंधान में देरी करने पर आरोपी को जमानत का लाभ मिल सकता है ? तो इसका जवाब है हाँ। अगर पुलिस अनुसंधान अधिकारी द्वारा अनुसंधान समय पर नहीं किया जाता है, और चार्जशीट न्यायालय के समक्ष (before the court) समय पर नहीं पेश की जाती है, तो आरोपी को जमानत का लाभ दिया जा सकता है, मतलब उसको जमानत मिल जाती हैं।


लेकिन जब अनुसंधान अधिकारी द्वारा अनुसंधान पूरा न किया गया हो, या जिन अपराधों में 10 साल से अधिक की सजा होती है, उन मामलों में 90 दिन की अवधि और जिन अपराधों में 10 साल से कम की सजा होती है, उन मामलों में पुलिस द्वारा न्यायालय में 60 दिन में चार्जशीट दायर न की गई हो, तब धारा 167 (2) सीआरपीसी Section 167(2) CrPC के तहत गिरफ्तार आरोपी को बेल दी जा सकती है, जिसे डिफॉल्ट बेल भी कहा जाता है, यह प्रावधान लम्बी जांच व लंबित जांच से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है।


इसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी टिप्पणी की गई है कि  धारा 167(2) सीआरपीसी के प्रावधान के अंतर्गत यह एक वैधानिक अधिकार नहीं बल्कि है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कानूनी प्रक्रिया का भी हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 167(2) सीआरपीसी के अंतर्गत शर्त पूरी न होने पर किसी अपराधी को जमानत पर रिहा किया जाना उसका मौलिक अधिकार है।


क्या चार्जशीट प्रस्तुत करते समय आरोपी को न्यायालय के सामने पेश करना अनिवार्य है | Is it mandatory to produce the accused before the court -


जी हाँ ! अब ये क्यों जरूरी है यह हम आगे पढ़ते कि न्यायालय के समक्ष चार्ट शीट दाखिल करते समय आरोपी को न्यायालय के समक्ष पेश करना अनिवार्य होता है, क्योंकि किसी भी मामले में जांच पूरी हो जाने के बाद अनुसंधान अधिकारी द्वारा संबंधित कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की जाती है।


यह एक आम प्रैक्टिस है क्योंकि चार्जशीट पेश करते समय अनुसंधान अधिकारी द्वारा आरोपी को गिरफ्तार करके न्यायालय के सामने पेश किया जाता है, यदि आरोपी कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं है, तो कोर्ट के द्वारा चार्जशीट को लेने से भी मना कर दिया जाता है।


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