चेक बाउंस के मामले मे धारा 420 IPC के तहत भी केस दर्ज करवा सकते हैं। Section 420 IPC in case of Cheque Bounce.
SachinLLB : आज हम जानेंगें की क्या चेक बाउंस होने पर धारा 420 IPC के तहत भी प्रकरण दर्ज करवा सकते हैं, क्योंकि कई बार ये होता है की परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे बैंक खाते का चेक देता है, जिसमें भुगतान के लिए पर्याप्त राशि नहीं है और इसके कारण भुगतान प्राप्तकर्ता को बैंक राशि देने से मना कर देता हैं यानी वह चेक अपर्याप्त राशि (Fund Insufficient) होने के कारण अनादरित हो जाता है।
तब ऐसी स्थिति में खाता धारक को 2 वर्ष तक का कारावास या चेक की राशि का डबल जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है । लेकिन क्या आपको पता है कि परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 के अलावा यह ज्ञात होते हुए की कम राशि या शून्य राशि वाला चेक देने वाले व्यक्ति पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 (छल-कपट) का आपराधिक मामला भी दर्ज किया जा सकता है।
क्या 138 के मामले में चेक देने वाले व्यक्ति को धारा 420 आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है -
अगर साधारण बात करें तो चेक देने वाले व्यक्ति ने भली-भांति जानबूझकर कर ऐसे बैंक के खाते का चेक दिया है जिस खाते में वह व्यक्ति पर्याप्त धन राशि नहीं रखता है, एवं परिवादी यानी भुगतान प्राप्तकर्ता को यह साबित करना होगा कि उसका खाता पहले से ही शून्य था।
तब भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 लागू होगी अन्यथा परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 ही लागू रहेगी। तथा चेक देने वाले व्यक्ति के ऊपर 138 NI ACT के अंतर्गत ही कार्यवाही की जा सकती हैं।
केरल हाई कोर्ट का चेक बाउंस के मामले में एक महत्वपूर्ण जजमेंट -
वीवीएलएन चेरी बनाम एनए मार्टिन उपरोक्त मामले में केरल हाई कोर्ट ने समस्त तथ्यों को सुनने के बाद यह निर्धारित किया कि किसी बैंक का चेक बाउंस होने मात्र के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 420 (छल-कपट) का अपराध नहीं होता हैं, जब तक यह साबित नही हो जाता कि चेक जारी करने वाले व्यक्ति को इस बात की जानकारी थी कि उसके खाते में चेक पर अंकित मूल्य की पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं है।
सारांश -
साधारण शब्दों में कहें तो चेक देने वाले व्यक्ति को यह ज्ञात था कि उसने जानबूझकर कर ऐसे बैंक खाते का चेक दिया है, जिस खाते में उसने पर्याप्त धन राशि नहीं रखी है। एवं परिवादी को यह साबित करना होगा कि उसका खाता पहले से ही शून्य था, चेक जारी करने वाले व्यक्ति ने जानबूझकर अपर्याप्त राशि वाले बैंक खाते का चेक दिया है।
तब भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 420 लागू होगी, नही तो परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 ही लागू रहेगी। चेक जारी करने वाले व्यक्ति को परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत ही दंडित किया जा सकता है।
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